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देवीदासोत दुलावत (सिसोदिया)

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देवीदास जी दुलावत महाराणा अमर सिंह जी द्वितीय(1698-1710) के राजकाल  के दौरान एक बार उनके धर्मपत्नी मेवाड़ के राणी सा किस कारण वश मारवाड़ पधारे तथा वापिस आते समय वो रणकपुर से सायरा फिर गोगुन्दा के रास्ते से मेवाड़ पधार रहे थे। उनकी साथ हमेशा की तरह कुछ सैनिक सुरक्षा के लिए थे। परन्तु इसी बीच पहाड़ी इलाके में घात लगाए बैठे लुटेरों ने काफिला देख लिया और तथा काफिला रोक दिया। लुटेरे- जान मान की परवाह चाहते हो तो सब कुछ हमें दे दो। सैनिक- ये मेवाड़ की रानी का काफिला है लुटेरे- हम केसे मान ले? राणी सा- ने पालकी में से सारा दृश्य देख लिया और सैनिकों को कहा इन लोगों को यहाँ भेज दो। लुटेरे- राणी सा के नजदीक आए और कहा माफी चाहते है पर हमारा धर्म ही लूट पाट करना और इसी से हमारी आजीविका चलती है तब राणी सा - मैं मेवाड़ की रानी हूं यहाँ से हट जाओ वरना अंजाम बुरा होगा। लुटेरे-होकम आप जो कुछ देना चाहो दे दो। राणी सा- ने अपना पाँव का झाँझर (पायल जैसा पैर में पहनने का आभूषण दे दिया।) लुटेरों- ने काफिला जाने दिया। काफिला उदयपुर महलों में पहुँचा तब राणी सा सारा वाकया राणाजी को सुना दिया राणाज...