मांजावत( मोजावत) सिसोदिया

मांजावत( मोजावत) सिसोदिया
महाराणा लाखा (1382-1421) के सबसे बड़े पुत्र चूण्डा जी के पुत्र
मांजा सिंह चुण्डावत
इनको राणा मोकल ने भैसरोड़गढ़ का पट्टा प्रदान किया था। जो बाद में खालसे हुआ।
पहला मत- राणा कुम्भा के समय जब मेवाड़ी सेना मालवा व गुजरात के सुल्तानो के साथ लड़ाई में व्यस्त थी। तब मंडौर के राव जोधा के आदेश पर राठौड़ो की फौज ने मेवाड़ पर चढ़ाई करने के लिए निकली तब मांजा जी चुण्डावत को मेवाड़ के कुछ सिसोदियो व अन्य राजपूतों की फौज के साथ उन्हे रोकने के लिए भेजा रास्ते में नाडोल के पास मेवाड़ व मारवाड़ की लड़ाई हुई तब इन्होंने मारवाड़ की सेना को रोक दिया और स्वयं वीरगति को प्राप्त हुए।
दुसरा मत- मांजा जी कपासन की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए।
संभवत् नाडोल की लड़ाई में जीवित बचे और कपासन की लड़ाई में मारे गए या फिर नाडोल में भी वीरगति को प्राप्त हुए।
पुत्र - गोविंद सिंह जी, रणवीर सिंह जी, नगराजजी, संग्राम सिंह जी, नींबा जी, नर्बद सिंह, सत्ताजी , शार्दुल जी,
धर्मपत्नी-
1.मणिकंवर गौड़ सहसमल की पुत्री
2.दुर्गाकंवर हाड़ी , आनन्द सिंह की पुत्री
3. पूर्णकंवर , राव रामसिंह की पुत्री
4. करमेता कंवर मेडतिया, राव सिंहा बरसिंहोत ठि. मेड़ता
तब इनके वंशजो को चुण्डावतों में से अलग बाँपी खाँप प्रदान कर दी गई जिसे “मांजावत“ कहा जाता है।
और मेवाड़ी बोली और अपभ्रंश भाषा की वजह से इनको मोजावत कहा जाने लगा।
राणपुर की लड़ाई में लड़ाई में नारायणदास मोजावत, मधुकर मोजावत, सांवलदास मोजावत लड़े।
मांजावतों के जागीरदार महाराणा अमर सिंह द्वितीय के समय 1704 में
1. वखत सिंह ( नर सिंह का पुत्र) 2000 रू.
2.प्रयागदास ( जगरूप सिंह का पुत्र) 1000 रू.
3. गरीबदास ( करम सिंह मोजावत का पुत्र) 1000 रू.
4. ताज खाँ ( नरहरदास मोजावत का पुत्र) 500 रू.
महाराणा भीम सिंह द्वितीय के समय मोजावत का सिर्फ एक ठिकाणा सीधा मेवाड़ महाराणा के अधीन था। उस समय सन् 1823 में मोजावत जागीरदार।
1. ठि. कठार पृथ्वीसिंह मोजावत ( चतरसिंह का पुत्र) 700 रू.
उपशाखाएँ - चतरसिंघोत, नरसिंघोत
ठि. कठार - मोजावत का था परन्तु धीरे- धीरे मेवाड़ में मराठों का प्रवेश बढ़ गया और उन्होंने कठार के पास अपनी चैकी स्थापित कर ली। तब मोजावत ने उन मराठो के साथ शराब (दारू) का सेवन किया और बहसा बहस करते हुए पूर्व निर्धारित षड्यंत्र के तहत उन मराठों पर हमला कर दिया और उनको मार डाला।
( यह बात किवदंती के आधार पर है जो उस क्षेत्र के सभी जाति के लोगों को पता है।)
ठि. कठार कि गिनती तृतीय श्रेणी सरदारों में की जाती है तथा यहाँ के ठाकुर को मेवाड़ महाराणा की बैठक में बुलाया जाता था।
मोजावतों के पट्टे ( जागीर) पहला भैसरोड़गढ. उसके खालसे हो जाने के बाद इनको भूताला और कठार के पट्टे मिले इनके अतिरिक्त भी अलग अलग जागीरदारों ने इनको जागीर प्रदान की थी।
मोजावतों के गाँव व ठिकाणे-
1. कठार ( खमनोर)
2. अरोली (मांडलगढ़)
3. थला ( रायपुर)
4. पीथलपुरा ( रायपुर)
5. सबलपुरा ( रायपुर)
6. उल्लई ( रायपुर)
7. माजास ( रायपुर)
8. सालेरा ( रायपुर)
9. किशनपुरिया ( आमेट)
10. पाड़ेता ( घोड़ाघाटी)
11. वापड़ा ( देलवाड़ा)
12. लाल मादड़ी ( घोड़ा घाटी)
13. कालीवास ( देलवाड़ा)
14. सिलाया उर्फ हेलाया (घोड़ाघाटी)
15. अमराजी का गुड़ा
16. मौजावतों का गुड़ा ( कुम्भलगढ़)
17. केसुली (घोड़ाघाटी)
18. वरड़ा ( देवड़ों के भानेज यह केसुली के आकर वहा बसे)
19. काड़ा कड़िया
20. लोसिंग
21. गोलाया ( खमनोर)
22. डुंढी (बरवाड़ा के पास , कठार के पास)
23. खीरावाड़ा ( सलूम्बर)
24. बोरज चुुडावतान (सलूंबर)
25. रतनपुरा( बम्बोरा)
26.हाथीदा (बम्बोरा)
27. कांजावाड़ा ( सलूम्बर)
28. सामेड़ा ( सलूम्बर)
29.माजावतों का गुड़ा ( सलूंबर)
30. रामगढ़ ( आसपुर)
31. छीपीखेड़ा
32. सालैया (सलूम्बर)
33. मौजावतों की भागल ( कुंभलगढ़)
34. डोडावली ( पंवारों की भानेज केसूली से वहाँ गोद गये।)
35. नरसिंगपुरा
साभार- शिवपाल सिंह जी चुण्डावत ठि. भोपजी के खेड़ा से फेसबुक पेज श्री चूंडा शोध संस्थान से मांजा के पुत्रों, उनकी पत्नीयों, कपासन में वीरगति, व गाँवो की जानकारी प्राप्त की गई। तथा कठार का फोटो प्राप्त किया गया।
वर्तमान में मांजावतो द्वारा “मोजावत“ उपनाम तथा कही कही “चूण्डावत“ उपनाम का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि मांजा जी स्वयं चूण्डा जी के पुत्र इसलिए सभी मांजावत चुण्डावत ही है परन्तु मांजावत की गिनती सिसोदिया की बाँपी खाँप में अलग से होती है।
किसी प्रकार की कोई गलती हो तो क्षमा करें तथा अतिरिक्त जानकारी प्रदान करावें।
लेखक- हेमेन्द्र सिंह दुलावत
ठि. शिव सिंह जी का गुड़ा ( सामल)
ठि. कठार 
राणा भीम सिंह के समय 1823 में मांजावत जागीरदार अन्त में दे रखा है दुलावत सरदार के बाद मांजावत लिखा हुआ है पुस्तक मज्झमिका मेवाड़ जागीरदारां री विगत लखक हुकम सिंह भाटी
राणा अमर सिंह द्वितीय के समय 1704 में मांजावतों के जागीरदार पुस्तक मज्झमिका मेवाड़ जागीरदारां री विगत लखक हुकम सिंह भाटी

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