सुआवत (सिसोदिया)
सुआवत (सिसोदिया)
महाराणा मोकल (1421-1433) में मेवाड़ की गद्दी पर बिराजे।
पुत्र
1.कुम्भकरण (मेवाड़ महाराणा कुम्भा के नाम से प्रसिद्व हुए।)
2. क्षेमकर्ण (खेमकरण जिनके वंशज प्रतापगढ़ के राजा और खींवावत कहलाए।)
3.सुआ जी (वंशज सुआवत)
4. सत्ता जी ( के पुत्र किता के वंशज कितावत हुए।)
5. नाथ सिंह जी( नाथावत सिसोदिया)
6. वीरमदेव जी
सुआ का मतलब तोता (मिट्ठू) होता है
सुआवत की जगह अपभ्रंश भाषा में सुवावत सुहावत और मेवाड़ी में बुजुर्गों द्वारा हुवावत कहा गया।
सिंहा जी सुआवत यंे सम्भवत् सुआ जी के पुत्र थे जिनको महाराणा रायमल ने सिंचाणा घोड़ा भेंट किया था जब मेवाड़ी सेना युद्व के लिए प्रस्थान कर थी और उन्होंने मालवा के खिलजी शासकों के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लिया।
महाराणा कुम्भा कालीन गुजरात व मालवा के सुल्तानों से हुई लड़ाई में सुआ जी ने शौर्य दिखाया और बाद में हुए युद्वों मे सुआ जी के वंशजों ने शौर्य दिखाया तब सुआ जी के वंशजो को सुआवत बाँपी खाँप बख्शी गई।
शुरू में सुआवतों के पास बड़ी जागीरें थी जो बाद में खालसा कर दी गई।
ठिकाणा - सेमड़ व मदार ये मेवाड़ महाराणा द्वारा बख्शाये गए।
सेमड़ मेवाड़ के तृतीय श्रेणी का ठिकाणा था (गोल के ठाकुर)
महाराणा अमर सिंह द्वितीय के समय 7 सुआवत मेवाड़ के जागीरदार थे जो सीधे मेवाड़ महाराणा के अधीन थे
1. जगरूप जी (भाखर जी सुआवत के पुत्र) 1500 रू.
2. हठीसिंह जी ( अखेराज जी सुआवत के पुत्र) 1000 रू.
3. गरीबदास जी (कान जी सुआवत के पुत्र) 500 रू.
4. स्याम जी ( वीजा के पुत्र) 500 रू.
5. अमर सिंह ( सबल सिंह सुआवत के पुत्र) 1000 रू.
6 स्हेरो जी ( भोज जी सुआवत के पुत्र) 1000 रू.
7. भोपत जी 500 रू.
कालान्तर में सेमड़ के ठाकुर से मेवाड़ दरबार द्वारा सेवाएँ ली जाती रही।
कभी - कभी सेमड़ के ठाकुर को उदयपुर रावले मे दरीखाने में बैठक में शामिल किया जाता था।
सुआवतों के ठिकाणे व गाँव
1. सेमड़
2. मदार
3. सुआवतो का गुड़ा (गोगुन्दा के पास)
4. सुआवतो का गुड़ा (डबोक के पास जो अब राणावतों का गुड़ा कहलाता है।)
5. सुखवाड़ा( नाथद्वारा के पास )
6. फतहपुरा
7. मेतवाला
8. देलवाड़ा
9. रामपुर
10. टोकरिया
11. वलड़ा(वागड़)
12.जामुन(बम्बोरा के पास)
13.गड़ा मौर्या ( वागड़ क्षेत्र में)
14. इनके अतिरिक्त कुछ गाँव और भी है जानकारी उपलब्ध करावें
लेखक- हेमेन्द्र सिंह दुलावत
ठि. शिव सिंह जी का गुड़ा
कुछ गाँवों के नाम चूण्डा शोध संस्थान के शिवपाल सिंह जी चूण्डावत ठि. भोपजी के खेड़ा से प्राप्त किए गए है।
वर्तमान में ज्यादातर सुआवत (सिसोदिया) सरदार ,राणावत उपनाम का प्रयोग करते हैं। कुछ जगह सिसोदिया और सुआवत या सुवावत उपनाम लिखते हैं।
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