ठि. माताजी का खेड़ा (दुलावत)

ठि. माताजी का खेड़ा (दुलावत) 1. ठाकुर देवीदास दुलावत द्वारा लुटेरों का सिर काट कर मेवाड़ महाराणा अमर सिंह द्वितीय (1698-1710) को भेंट करने पर उनको भूताला के पास पहाड़ी भाग की जागीरी प्रदान की गई जिसका नाम “दुलावतों का गुड़ा“ रखा गया । 2. उन्हीं ठाकुर के पुत्र “भाव सिंह जी“ को माताजी का खेड़ा की जागीर ,, उनके भाई सामल ठाकुर सुर सिंर जी व पिता देवीदास जी दुलावत द्वारा प्रदान की गई थी। जिसको (भाव सिंह जी का खेड़ा /भींव सिंह का खेड़ा /भीम सिंह का खेड़ा) कहा गया। 3. सन् 1700 से 1750 के बीच की बात है जब सामल ठाकुर द्वारा कर वसूला जाता था। तब इनके (भाव सिंह जी) किसी वंशज ने जो कि गाँव ठाकुर था ने कर देने से मना कर दिया। तब विवाद बढ़ गया तो उन्होने कहा कि - तू मेरा कलेजा ही ले ले( म्हारो कालजो ले ले)। इतना कहते ही उस दुलावत सरदार ने कटार निकाल कर स्वयं के शरीर में घुसा दी और लोकमान्यता के अनुसार अपना दिल निकाल कर दे दिया। ( संभवत् कटार लगने से वो उसी समय देवलोक हो गए होंगे।) 4. जब राणाजी को सारी बात पता चली तो उन्होंने गाँव को कर से मुक्त कर दिया और सामल से अलग कर दिया। अब स...